प्रदूषण की जांच और कार्यवाही नहीं हो रही है तो यूपी प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड क्यों गठित कर रखा हैः हाई कोर्ट


प्रयागराज। हाईकोर्ट इलाहाबाद ने गंगा प्रदूषण के मामले में दाखिल जनहित याचिका पर सुनवाई करते हुए जल निगम, यूपी प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड की कार्यशैली पर तीखी नाराजगी जाहिर की। कोर्ट ने टिप्पणी की कि जब गंगा में हो रहे प्रदूषण की जांच और कार्यवाही नहीं हो रही है तो यूपी प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड क्यों गठित कर रखा है।

      बुधवार को हाईकोर्ट ने कहा कि क्यों न इसे समाप्त कर दिया जाए। कोर्ट ने मामले में नमामि गंगे परियोजना के महानिदेशक को निर्देश दिया कि गंगा को स्वच्छ और निर्मल बनाने में अरबों रुपये खर्च किए गए बजट का ब्यौरा प्रस्तुत करें।

      गंगा अब तक साफ क्यों नहीं हो सकी? कोर्ट ने अगली सुनवाई पर परियोजना के महानिदेशक से इस परियोजना में खर्च हुए बजट का ब्यौरा प्रस्तुत करने का निर्देश दिया है। स्वतः संज्ञान ली गई जनहित याचिका पर मुख्य न्यायमूर्ति राजेश बिंदल, न्यायमूर्ति मनोज कुमार गुप्ता और न्यायमूर्ति अजीत कुमार की खंडपीठ सुनवाई कर रही है।

       सुनवाई के दौरान याची अधिवक्ता ने बताया कि गंगा में शोधित जल नहीं जा रहा है। कानपुर में लेदर इंडस्ट्री, गजरौला में शुगर इंडस्ट्री की गंदगी शोधित हुए बगैर गंगा में समा रही है। शीशा, पोटेशियम व अन्य रेडियोएक्टिव चीजें गंगा को दूषित कर रहीं हैं। यूपी में एसटीपी के संचालन की जिम्मेदारी अडानी ग्रुप की कम्पनी को दी गई है, लेकिन संयत्रों के काम न करने से गंगा मैली बनी हुई हैं। इस पर कोर्ट में मौजूद जल निगम के परियोजना निदेशक से पूछा कि एसटीपी की रोजाना मॉनिटरिंग कैसे होती है? परियोजना निदेशक ने एक रिपोर्ट पेश की। कोर्ट ने उस पर असंतुष्टी जताई। कहा ये तो मंथली रिपोर्ट है, प्रतिदिन की रिपोर्ट कहां है? परियोजना निदेशक उसे पेश नहीं कर पाए। कोर्ट ने रिपोर्ट देखकर पूछा कि कैसे करते हो मॉनिटरिंग। निदेशक ने कहा कि ऑनलाइन होती है। कोर्ट ने कहा कि वीडियो देखकर मॉनिटरिंग करते हो। इस पर अपर महाधिवक्ता नीरज त्रिपाठी ने डे बाई डे (प्रतिदिन) की रिपोर्ट तैयार करने का आश्वासन दिया।

कोर्ट ने कहा कि आंखों में धूल झोंक रही जल शोधित के दावे
कोर्ट ने न्यायमित्र के आग्रह पर कानपुर आईटी और बीएचयू आईटी को एसटीपी से दावे किए गए शोधित पानी की टेस्ट रिपोर्ट पर ध्यानाकर्षण किया। कोर्ट ने सीलबंद रिपोर्ट खोलकर देखा तो हैरानी जताई। उसमें से कुछ की रिपोर्ट इस वजह से नहीं आई की जांच के लिए भेजा गया सैंपल की मात्रा जांच करने की जरूरत से बहुत कम थी। कुछ सैंपल की रिपोर्ट में शोधित पानी की रिपोर्ट मॉनक के अनुरूप नहीं पाया गया। कोर्ट ने कहा कि यह रिपोर्ट तो टोटल आईवाश (आंखों में धूल झोंकने वाली) है। ट्रीटमेंट प्लांट तो यूजलेस (किसी काम का नहीं) हैं। आपने एसटीपी की जिम्मेदारी निजी हाथों में दे रखी है। वे काम हीं नहीं कर रही हैं।

         जब जांच करानी होती है तो फाइनल डिस्चार्ज में साफ पानी मिलाकर सैम्पल ले लिया जाता है और अच्छी रिपोर्ट तैयार करा ली जाती है। कोर्ट ने कहा कि ऐसे काम नहीं चलेगा। रिपोर्ट से साफ है एसटीपी काम नहीं कर रहीं हैं। गंदा पानी सीधे गंगा में जा रहा है। परियोजना प्रबंधक ने कहा कि जब गंदा पानी ज्यादा मात्रा में एसटीपी से जाएगा तो शोधित नहीं हो पाएगा। कोर्ट ने फिर पूछा कि आपके पास कोई पर्यावरण एक्सपर्ट (इंजीनियर) है। जल निगम इस मामले में कैसे काम कर रहा है?

        कोर्ट ने कहा कि प्रयागराज, वाराणसी गंगा के किनारे बसे यूपी के कई शहर धार्मिक महत्व के हैं। इन शहरों में स्थानीय लोगों के साथ रोजाना और कुंभ, महाकुंभ के दौरान करोड़ों लोग पहुंचते हैं। उनसे निपटने के लिए किस तरह से प्रबंध करते हैं। क्या योजना है? योजना कैसे बनाई जाती है? इसका सरकारी अधिवक्ता और जल निगम के परियोजना प्रबंधक के पास कोई जवाब नहीं था। प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड से पूछा कैसे करते हो निगरानी।

        सुनवाई के दौरान कोर्ट ने प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड से पूछा कि आपका क्या रोल है? कैसे निगरानी कर रहे हो? आपके पास इस सम्बंध में कितनी शिकायतें पहुंचीं हैं और कितने पर कार्रवाई की गई है? बोर्ड के अधिवक्ता इस पर ठीक जवाब नहीं दे पाए। तो कोर्ट ने कहा कि जब आप निगरानी और कार्रवाई नहीं कर पा रहे हैं तो क्यों न बोर्ड को बंद कर दिया जाए? इस दौरान कोर्ट के सामने एसटीपी से जुड़े कई तथ्य प्रस्तुत किए गए।

        कोर्ट ने इस सम्बंध में केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड से जानकारी मांगी। लेकिन ठोस जवाब न मिलने पर जल शक्ति मिशन की ओर से नेशनल मिशन फॉर क्लीन गंगा के तहत चलाए जा रहे नमामि गंगे परियोजना के बारे में जानकारी मांगी। कहा कि इस परियोजना के जरिए गंगा सफाई में अरबों रुपये खर्च हो गए होंगे लेकिन गंगा तो जस की तस हैं। कोर्ट ने नमामि गंगे परियोजना के महानिदेशक को अब तक खर्च किए गए बजट का ब्यौरा अगली तिथि को पेश करने का निर्देश दिया। प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड से कहा कि वह जांच और कार्यवाही से सम्बंधित पूरी रिपोर्ट कोर्ट के समक्ष प्रस्तुत करें। मामले की अगली सुनवाई 31 अगस्त को होगी।
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