इमाम बारगाहों व अजाखानों में मजलिसों का दौर शुरु

- आजमगढ़ व सीतापुर से कैराना पहुंचे शिया धर्मगुरु
- इमाम हुसैन के बलिदान की गाथा सुनकर गम में डूबे लोग

कैराना। मोहर्रम का चांद नजर आने के साथ ही कैराना के इमाम बारगाहों व अजाखानों में मजलिसों का दौर प्रारंभ हो गया। मजलिसों के लिए आजमगढ़ व सीतापुर से शिया धर्मगुरु यहां पहुंचे हैं। उन्होंने इमाम हुसैन के बलिदान पर विस्तार से प्रकाश डाला। इसके चलते शिया समुदाय के लोग गम में डूबे हुए हैं।
   मोहर्रम के महीने में शिया समुदाय के लोग इमाम हुसैन की याद में गम मनाते हैं। इसी के चलते मोहर्रम का चांद नजर आते ही नगर के इमाम बारगाहों व अजाखानों में मजलिसें प्रारंभ हो गई है। शनिवार रात करीब दस बजे मोहल्ला अंसारियान में स्थित बड़े इमामबाड़े में मजलिस का शुभारंभ मोहम्मद माहिर हुसैन की पवित्र कुरआन की तिलावत के साथ हुआ। सोजखानी कुर्रतुलऐन मेहदी, हैदर व मो. अफजल ने की। इस अवसर पर आजमगढ़ से तशरीफ लाए मौलाना जावेद नजफी ने संबोधित करते हुए कहा कि मोहर्रम गम का महीना है, जिसमें रसूले मकबूल के नवासे इमाम हुसैन को करबला में भूख-प्यासा रखकर यातनाएं दी गई तथा शहीद कर दिया गया। वहीं, रविवार सुबह दस बजे दूसरी मजलिस मोहल्ला कलालान में स्थित रजा अली खां के अजाखाने में आयोजित की गई, जिसमें मुदस्सिर जैदी ने हमनवां के साथ मरसिया पढ़ा। मजलिस को सीतापुर जिले से पहुंचे मौलाना रजी बिस्वानी ने संबोधित किया। उन्होंने कहा कि करबला की जंग हक व बातिल के मध्य थी। इमाम हुसैन हक पर थे, जो दीन-ए-इस्लाम बचाना चाहते थे। लेकिन, यजीदी लश्कर ने 61 हिजरी दस मोहर्रम यौम-ए-आशूरा को इमाम हुसैन को उनके लश्कर के साथ शहीद कर दिया। इसी वजह से हम हर वर्ष इमाम हुसैन का गम मनाते हैं। हमें इमाम हुसैन की कुर्बानी से सबक लेना चाहिए। कार्यक्रम का संचालन वसी हैदर साकी ने किया। फैसल अली व बाकर ने नोहेखानी की। इस अवसर पर मुतवल्ली काजिम हुसैन, रजा अली खां, मो. अली, सरवर हुसैन, हाजी शाहिद हुसैन, जावेद रजा, रजी हैदर, शबाब हैदर, शादाब हैदर, मो. मेहदी, जाफर अब्बास, शारिब अली, जमाल हैदर, अतहर हुसैन, सईदुल, आसिफ, नासिर हुसैन, डॉक्टर फरहत हुसैन, बुंंदन अली, अजहर हुसैन, मेहरबान अली, सदाकत हुसैन व शराफत आदि मौजूद रहे।