जीने की राह......
हमारा जन्म किस सम्प्रदाय किस जाति मे मे हुआ है। ये बिलकुल भी महत्वपूर्ण नही है कि हम किस वृत्ति मे जीवन व्यतीत कर रहे हैं महत्वपूर्ण ये है । क्योंकि हर सम्प्रदाय और जातियो मे जन्मे व्यक्ति सभी वृत्तियों मे जीवन जी रहें है ।
      कुछ लोग हैं जो बुद्धि में जीते हैं, वे ब्राह्मण । कुछ लोग हैं जो भुजाओं में जीते हैं, वे क्षत्रीय । कुछ लोग हैं जिनकी खोज महत्त्वाकंशा, प्रतिष्ठा, धन में है वें लोग हैं वैश्य। कुछ लोग हैं जिनकी कोई खोज ही नहीं है। जो ऐसे ही जीते हैं, जैसे कि एक लकड़ी का टुकड़ा नदी में बहता चला जाए-न कहीं जाना, न कहीं पहुंचना, न कोई मंजिल है, न कोई गंतव्य है। न कोई बड़ी भविष्य की महत्त्वाकांक्षा है-ऐसे व्यक्ति हैं शूद्र। चुनाव आपको करना है की किस वृत्ति मे जीना है। क्योंकि आपके भीतर जो बैठा है उससे मूल्यवान और कोई नही। आपके भीतर जो बैठा है उससे पूज्य और कोई नही। आपके भीतर जो बैठा है उससे श्रेष्ठ और कोई नही।
          प्रत्येक वृत्ति का लाभ है और प्रत्येक वृत्ति की हानि भी है। व्यक्ति की चेतना जिस वृत्ति मे चैतन्य बन जाती है और उसी वृत्ति मे वो होशपूर्वक जीवन जीता है तो वही जागरूकता सुरति बन जाती है, ये स्थिति ही केवल लाभ की है अन्यथा जीवन व्यर्थ ही चला जाता है। जीवन की कौसोटी धन, पद और प्रतिष्ठा नही बल्कि आपके जीवन मे शांति और आनंद है। अगर आप एक आनंदमय जीवन जी रहे तो समझ लो आप ईश्वर के निकट हैं अन्यथा की स्थिति मे समझ लेना जीवन व्यर्थ जा रहा है।

                                           राकेश सैनी