मन ही मनुष्य के बंधन व मोक्ष का कारणःब्रह्म स्वरूपानंद


- श्रीमद देवी भागवत महापुराण कथा के चौथे दिन महाराज ने किए प्रवचन
- गांव व क्षेत्र से आये हजारों श्रद्धालुओं ने की कथा श्रवण
- महापुराण कथा व सुंदर भजनों में झूम उठे श्रद्धालुगण 
कैराना। मानव चेतना केंद्र आश्रम में चल रही श्रीमद देवी भागवत महापुराण कथा ज्ञान यज्ञ के चौथे दिन स्वामी ब्रह्म स्वरूपानंद महाराज ने बताया कि मन ही मनुष्य के बंधन व मोक्ष का कारण है। मन के कारण मनुष्य मेरा मेरी के चक्कर मे लगा रहता है। लेकिन यह संसार एक भृम है, यहा किसी को सदा नही रहना है। 84 लाख योनि है। जो यहा इस संसार से मिला है वो येही रह जायेगा। ना कोई कुछ लेकर आता है ना ही लेकर जाएगा। 
        सोमवार को कैराना क्षेत्र के ऊंचागांव में स्थित मानव चेतना केंद्र आश्रम में चल रही श्रीमद देवी भागवत महापुराण कथा यज्ञ के चौथे दिन स्वामी विशुद्धानंद महाराज के परम शिष्य स्वामी ब्रह्म स्वरूपानंद महाराज ने महापुराण में बताया कि सब कुछ मन पर निर्भर है। सुख-दुख सब मन पर निर्भर करता है। लोभी मनुष्य कभी सुखी नही हो सकता। तपस्या से समस्या दूर होती है। जहां तपस्या होती है वहा दुख नही ठहरता। 
      उन्होंने बताया कि तुलसीदास जी कहते है! सन्तो के सामान कोई सुखी नही है। बिना ज्ञान के मुक्ति नही हो सकती है, सुखदेव जी अपने पिता से कहते है मुझे ऐसा ज्ञान दीजिए जिससे मेरा मन भगवान में लग जाये। मुझे भगवान में मिलना है संसार मे नही। मनुष्य के जीवन मे सुख-दुख दोनों है। मूर्ख मनुष्य दुख को रोककर काटता है, लेकिन ज्ञानी पुरुष उसे हस कर काट लेता है। ऐसा कोई नही है जिसको माया ने अपने वश में नही किया हो। माया मरी ना मन मरा, मर-मर गया शरीर। आशा तृष्णा ना मरी कह गए दास कबीर।। मेरा मेरी के चक्कर मे मनुष्य लगा हुआ हैं इसके कारण ही मनुष्य अपना सारा जीवन खो देता है। सुखदेव जी कहते है भूख अन खाने से मिट्टती है पुत्र को देखने से भूख नही मिटती। सुखदेव जी राजा जनक के पास पहुच जाते है। दुवार वाले सुखदेव से 5 प्रशन का उत्तर पूछते है। सुखदेव जी दुवार वालो से कहते है सुख-दुख मनुष्य के जीवन के दो हिस्से है। जो आते जाते रहते है।
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👉 गुरु के बिना मनुष्य को ज्ञान नही हो सकता....
अगर मोक्ष को है पाना तो गुरु की शरण मे आना चाहिए। गुरु के बिना मनुष्य को ज्ञान नही हो सकता। काम, क्रोध, मोह, लोभ व अहंकार का फंद गुरु जी के चरण शरण मे ही कट सकता है। मोक्ष प्राप्ति के लिए मनुष्य को सबसे पहले गायत्री मंत्र से मन को साफ कर लेना चाहिए, सदा संतुष्ट रहे, किसी से कोई आशा ना रखें। सदा सत्य वचन बोले, तपस्या से काम क्रोध, को नष्ट करे। अगर मनुष्य में वैराग्य आ जाये तो वह मनुष्य घर रहे या वन में रहे उससे कोई फर्क पड़ने वाला नही है। मनुष्य को सदा अपने स्वरूप में विराजमान रहना चाहिए। मन ही मनुष्य के बंधन व मोक्ष का कारण हैं। सारा खेल मन का है। जिसे कल्याण की इच्छा है उसे सदा गुरु के समीप रहना चाहिए। 
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👉 जिसका कोई गुरु नही उसका जीवन शुरू नही.....
गुरु के बिना मुक्ति मिलने वाली नही है। मन के धरातल में सुख-दुख है। ये सब आत्मा में नही है। आत्मा में कोई फर्क नही है, फर्क ओर बंधन केवल मन मे है। आत्मा रूप स्वरूप केवल एक है, बाकी कुछ नही है। बिना सन्तो की शरण के मनुष्य को ज्ञान नही होता। जैसी हमारी दृष्टि होती है सृष्टि वैसी ही दिखाई देने लगती है। आत्मा दोष मुक्त है, आत्मा के अंदर कोई दोष नही है, दोष हमारे मन मे है। जबतक ज्ञान नही है जब तक दुख है, ज्ञान हुआ तो दुख सुख में बदल जायेगा। बन्धन का मुख्य कारण ना समझ है। वही सुंदर भजनों के साथ गाव व क्षेत्र से आये हजारों श्रद्धालुओं ने कथा श्रवण की। 
       महाराज ने बताया कि कल सुखदेव, भीष्म पिता माह, दशक की कथा पर प्रशंग किया जाएगा।