काम क्रोध से भी बड़ा पाप है लोभःब्रह्मा स्वरूपानंद

👉 आश्रम में चल रही श्रीमद देवी भागवत कथा में सातवें दिन महाराज ने किए प्रवचन 
👉 गांव व दूर-दराज से आश्रम में पहुचे हजारों श्रद्धालुओं ने की कथा श्रवण
👉 हर दिन शाम 5 बजे से 7 बजे तक आश्रम में विशेष पूजा-अर्चना के साथ होता है महायज्ञ
कैराना।  मानव चेतना केंद्र आश्रम में चल रही श्रीमद देवी भागवत महापुराण कथा ज्ञान यज्ञ एवं शतचंडी महायज्ञ के सातवे दिन स्वामी ब्रह्म स्वरूपानंद महाराज ने अपने प्रवचन में बताया कि मनुष्य के दुख का सबसे बड़ा कारण उसका मोह है। गुरु के बगैर मनुष्य को ज्ञान नही हो सकता। गुरु के बगैर मनुष्य का कल्याण नही हो सकता। मनुष्य के जीवन मे गुरु को होना अति आवश्यक है। 
      बृहस्पतिवार को कैराना क्षेत्र के ऊंचागांव में स्थित मानव चेतना केंद्र आश्रम में चल रही श्रीमद देवी भागवत महापुराण कथा ज्ञान यज्ञ एवं शतचंडी महायज्ञ के सातवे दिन स्वामी विशुद्धानन्द महाराज के परम शिष्य स्वामी ब्रह्म स्वरूपानन्द महाराज ने महापुराण में प्रवचन करते हुवे बताया कि जिसका कोई गुरु नही होता उस मनुष्य का जीवन सफल नही होता है। इस लिए जीवन मे गुरु को होना जरूरी है। सबसे बड़ा पाप लोभ है। लोभी मनुष्य कभी भी पाप कर सकता है। काम, क्रोध के बाद मनुष्य पश्चाताप करता हैं, लेकिन लोभी मनुष्य कभी पश्चाताप नही करता, वह हर वक्त येही चाहता है ओर धन आ जाये। घर मे जब तक सब ठीक-ठाक चलता है मनुष्य भगवान या गुरु को याद नही करता। जीवन मे थोड़ी समस्या आ जाये तुरन्त भगवान व गुरु को याद करना शुरू कर देगा। शत्रु से सदा सावधान रहना चाहिए, शत्रु पर कभी विश्वास नही करना चाहिए। कभी जीवन मे अहंकार नही करना चाहिए। यदि मनुष्य को अंहकार हो जाये, तो समझ लीजिए गिरने वाला है। अभिमान मनुष्य की बुद्धि का नाश कर देता हैं। 
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👉 अनदान महादान.....
महाराज जी ने बताया कि अनदान सबसे बड़ा दान है। जीवन मे अनदान का दान हमेशा करना चाहिए। उन्होंने बताया कि घर मे पहली रोटी गाय की निकालनी चाहिए। बाद कि रोटी कुत्ते की निकालनी चाहिए। पक्षियों के लिए अपनी छत पर एक मुट्ठी अन दान करे। पक्षियों के लिए जलहारी रखे। दान करने से धन नही घटता हैं। मनुष्य को हर दिन अनदान करना चाहिए।
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👉 राजा हरिशचंद्र बड़े चिंतित.......
राजा हरिशचंद्र अपने पुत्र के मोह में अंधे हो गए, वरुणदेव को हर रोज पुत्र दान करने का वादा करते रहे झूठ बोलते रहे। इससे वरुणदेव ने गुस्सा होकर हरिशचंद्र को श्राप दे दिया। इससे राजा बीमार हो गए। राजा हरिशचंद्र ने उसके बाद झूठ बोलना बंद कर दिया, उसके बाद राजा सच बोलने लगे। ब्राह्मण राजा हरिशचंद्र को सकल्प कराते है ओर पूरा राजपाठ दान में माग लिया। राजा ब्राह्मण को अपना पूरा राजपाठ दान कर देते है। उसके बाद काशी के बाजार में राजा अपने पुत्र व पत्नी को बेचने के लिए खड़े हो जाते है। और आँखों मे आशु लिए लोगो से कहते है कि कोई हमे खरीद ले, मेने उसके बाद ब्राह्मण को दान देना है। ब्राह्मण राजा के पुत्र व पत्नी को खरीद लेता है ओर अपने साथ ले जाता है। उसके बाद राजा हरिशचंद्र खुद भी बिक गए।
     वही, सुदर भजन के साथ राजा हरिशचंद्र की कथा सुनकर श्रद्धालुओं की आँखे नम हो गयी। वही, सुदर भजनों के साथ गांव व दूर-दराज से आश्रम में पहुचे हजारों श्रद्धालुओं ने कथा श्रवण की।