ग़ज़ल
                    
ज़माने में कोई तुझसा, बोहत ढूंढा, नहीं मिलता।
नहीं मिलता, बोहत ढूंढा, बोहत ढूंढा नहीं मिलता।।

नहीं मिलतीं तेरे जैसी, वो नीली झील सी आंखें।
तेरे जैसा कोई चेहरा, बोहत ढूंढा नहीं मिलता।।

नही मिलता सिमट कर वो हिफाज़त का सा इक एहसास।
तेरी बाहों का सा घेरा बोहत ढूंढा नहीं मिलता।

लिखा था मैंने जो पन्नो पे इन ताज़ा हवाओं के।
 बहारों का वही किस्सा बोहत ढूंढा नहीं मिलता।।

मैं जी उट्ठी थी जिसमे फौज़िया खुद को डूबा कर भी।।
मुझे वो इश्क़ का दरिया बोहत ढूँढा नहीं मिलता।।।
          
                           फौजिया अफजाल (फिज़ा)