जन्नत के खुले द्वार, बरसेंगी रहमतें : मौलाना मुरसलीन

👉 मुकद्दस रमजान में 70 गुना अधिक मिलता है पुण्य, इबादत में जुटे मुसलमान
कैराना (शामली)। खुदा की राह में खुद को समर्पित करने का प्रतीक मुकद्दस माह रमजान—उल—मुबारक प्रारंभ हो चुका है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, रमजान में जन्नत के दरवाजे खोज दिए जाते हैं। तीन अशरों में विभाजित रमजान में अल्लाह की रहमतें बरसती है, मगफिरत होती है और दोजख से छुटकारा मिलता है। सच्चे मन से मांगी गई दुआ भी जायज दुआ भी कुबूल होती है।
   इस्लामिक कैलेंडर के हिसाब से पवित्र रमजान—उल—मुबारक नौवां महीना है। इस महीने में रखे जाने वाले रोजे इस्लाम मजहब के मूल पांच स्तंभों में से एक है। यह महीना बड़ा ही बाबरकत और रहमत वाला है। इस महीने के पहले दस दिन रहमत के होते हैं। धार्मिक परिभाषा में इसको पहला अशरा कहा जाता है। इसमें अल्लाह ताला की अपने बंदों पर खास रहमतें बरसती है। दूसरा अशरा बख्शिश यानी मगफिरत का होता है। इस प्रकार 11वें रोजे से 20वें रोजे तक लोग अल्लाह के दरबार में अपने गुनाहों की माफी मांगते हैं, जिसमें उनकी बख्शिश होती है। पवित्र महीने के आखिरी दस दिन दोजख यानी नरक से छुटकारे के होते हैं, इसका उच्चारण यह होता है कि बहुत से लोग गलत कार्य करते हैं, वें अगर सच्चे दिल से माफी मांग लेते हैं तथा भविष्य में ऐसा न करने का संकल्प ले लेते हैं, तो उनको दोजख से छुटकारा मिल जाता है। 
        इस्लामिक विद्वान मौलाना मुरसलीन अहमद रशीदी बताते हैं कि रोजा सहिष्णुता, हमदर्दी और बुराइयों से परहेज करना, झूठ से किनारा करना व चुगलखोरी से बचना सिखाता है। रोजा केवल खानपान का ही नहीं, बल्कि आंखों और जुबान का भी होता है। हजरत पैगंबर मोहम्मद साहब के प्रवचन में कहा गया कि रमजान में जन्नत के दरवाजे खोल दिए जाते हैं तथा जहन्नम के दरवाजे बंद कर दिए जाते हैं। 
       मौलाना मुरसलीन ने बताया कि पवित्र रमजान में इबादत, नमाज और कुरआन तिलावत का 70 गुना अधिक पुण्य मिलता है। रमजान में मुसलमानों द्वारा रात्रि में विशेष नमाज तरावीह भी अदा की जाती है। रोजा हर बालिग मर्द और औरत पर फर्ज है।
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एतकाफ के अमल से मिलती है पाकीजगी
रमजान के पवित्र महीने में मुस्लिम समाज के लोग एतकाफ करते हैं। इसमें कोई भी व्यक्ति सवाब की नीयत से महीने के अंतिम दस दिनों के लिए मस्जिद में आकर बैठ जाता है, उसका रहना, सहना, सोना और खाना सबकुछ मस्जिद में होता है। इन दस दिनों में वह कुरआन पढ़ने और नमाज पढ़ने में अधिकतर समय गुजारता है। इससे रूह को पाकीजगी मिलती है। एतकाफ एक ऐसी इबादत है, जिसको हजरत मोहम्मद साहब ने पूरी उम्र निभाया है। वहीं, महिला घर के किसी एक कोने में एतकाफ में बैठ सकती है। इन दस दिनों में उन्हें अधिकतर जीवन इसी कोने में बैठकर बिताना होता है। ईद का चांद नजर आने पर एतकाफ की अवधि समाप्त हो जाती है।
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शब—ए—कद्र की रात बड़ी खुशकिस्मत
पवित्र रमजान के महीने में शब-ए-कद्र की रात भी होती है। हजरत मोहम्मद साहब के प्रवचन के अनुसार, रमजान के आखिरी दस दिनों में शब-ए-कद्र को 21, 23, 25, 27 और 29 की रातत में तलाश किया जाता है। इस रात के दौरान इंसान को नूर महसूस होता है, जिसमें इंसान के सामने तमाम चीजें झुकी-झुकी सी लगती है। जो इंसान इस रात को पा लेता है, वो बड़ा ही खुशकिस्मत और भाग्यवान होता है। यह रात आम दिनों के लिहाज से एक हजार महीनों के बराबर होती है।
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सदका—फितरा और जकात का महत्व
रमजान—उल—मुबारक में मुस्लिम समाज के लोग सदका व फितरा देते हैं। ईद से पहले फितरा दिया जाता है, जिसमें परिवार के प्रत्येक सदस्य को ढ़ाई किलोग्राम के हिसाब से गेहूं अथवा उसकी कीमत की रकम जरूरतमंदों को दी जाती है। वहीं, जिनके माल पर एक सााल बीत जाए, वो जकात भी देते हैं। इस्लाम में जो धनवान होता है, जिसके पास साढ़े सात तोला सोना या 152 तोला चांदी या उनकी कीमत होती है, तो उस पर जकात वाजिब हो जाती है। जकात भी जरूरतमंदों को दी जाती है।
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