हज़रत इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम की याद में नातिया महफ़िल का आयोजन
कैराना (शामली)। अंजुमन गुलसितान-ए-उर्दू अदब की ओर से गत रात्रि नगर के मौहल्ला अफगानान स्थित पठानों वाली मस्जिद के निकट नौशाद ख़ान के निवास पर एक शानदार नातिया शेरी नशसित का आयोजन किया गया। नशसित का आगाज कारी मुज़म्मिल नाते-ए-पाक से हुआ।महफ़िल की अध्यक्षता हाजी अकबर अंसारी ने की तथा संचालन मास्टर अतीक शाद ने किया।
नातिया महफ़िल के रुह रवां शायर सलीम अख्तर फ़ारुकी ने अपना शेर कुछ यूं पढ़ा,
अख़्तर'' हमें क्यों फ़खर है हज़रत ए हुसैन पर,
यह बात इस जहान को बता ने को रह गई।
सर ना झुकाना तुम कभी बातिल के सामने,
करबो बला यह हम को बताने को रह गई।

शायर अनीस जिगर ने पढ़ा,
तुफ़ान से डर के भी य ज़िया केसे रह सके,
मिलकर लगा दो आप भी नारा हुसैन का।

उस्मान उस्मानी ने पढ़ा,
ख्वाहिश है मालो ज़र की ना दसतार चाहिए,
नज़रे करम बस आपकी सरकार चाहिये,
हाजी अकबर अंसारी ने अपना शेर कुछ यूं पढ़ा ,
इक रात आप ख्वाब में तशरीफ़ लाए थे,अब तक भी उस मकान से खुशबू नहीं गई।

उस्ताद शायर जनाब आरिफ़ ख़ान कमर ने पढ़ा,

अल्लाह बोलता था नबी की ज़बान में,
उनका कलाम जो है खुदा का कलाम है।

युवा शायर सुहेल राही ने पढ़ा,
मिदहत जो कर रहा हूं जो मिदहत हुसैन की 
दिल में बसी हुई है मिदहत हुसैन की।

उभरते हुए शायर आशिक ज़िया ने कहा,
यह भी रसूले पाक का अहसान हो गया,
वहशी अरब का सारा मुसलमान हो गया।

गुलज़ार कैरानवी ने पढ़ा,
जो शख्स अपने नाम का सद्का निकाल देता है,
ख़ुदा उसकी हर मुसीबत टाल देता है।
नगर के तरन्नुम के शहंशाह फुरकान ख़ान ने अपना शेर कुछ यूं पढ़ा,
अपने लहू से दीन को सींचा हुसैन ने 
रंग लाई शहादत कर्बला में उसी की है।

नगर के प्रसिद्ध शायर मास्टर शकील अहमद शकील ने अपनी उपस्थिति दर्ज कराते हुए अपना शेर कुछ यूं पढ़ा,
हक़ पै लड़ते लड़ते इक दिन वो घडी भी आ गई,
हो गया कुर्बान सारा खानदान ए मुसतुफ़ा,
      महफ़िल के अंत में नौशाद ख़ान ने नशसित ने सभी शायरों व श्रोताओं का शुक्रिया अदा किया। 
       वहीं अंजुमन गुलिस्तान-ए-उर्दू अदब कैराना के बानी फ़िरोज़ ख़ान व नवैद अहमद अय्यूबी ने ऐलान किया कि आगामी नशसित 1 अगस्त को होगी।
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